एक चुप सौ को हराए, एक चुप सौ को सुख दे जाए - आचार्य देवेंद्र साग़र
 

 

बैंगलोर । बसवनगुडी  में आयोजित प्रवचन में  आचार्य देवेंद्रसागरसूरिजी बोले की आप सभी ने अपने जीवन में एक कहावत तो सुनी ही होगी- एक चुप सौ को हराए, एक चुप सौ को सुख दे जाए और इसलिए हम कई बार चुप रहते हैं, मौन रह जाते हैं क्योंकि यह सच भी है कि एक मूर्ख व्यक्ति के सामने मौन रहने से अच्छा उत्तर और कुछ भी नहीं हो सकता। परंतु जीवन में सदैव चुप रहना उचित नहीं होता है। शास्त्रों में कहा गया है- जहां पाप का बल बढ़ रहा हो, जहां छल-कपट हो रहा हो वहां पर मौन रहने से अधिक गंभीर अपराध और कुछ नहीं हो सकता।

 

 

 

 


 

 

 

वे आगे बोले कि

कभी-कभी हम सबके जीवन में एक समस्या अवश्य आती है कि हम किसी ताकतवर के समक्ष मौन हो जाते हैं। ऐसा क्यों? प्राय: उसकी ताकत से बचने के लिए हम मौन रह जाते हैं। मानते हैं कि ऐसा करने से हम एक विवाद से बच जाते हैं। हो सकता है कि एक संघर्ष से भी बच जाते हों। परंतु ऐसा बचाव देर-सबेर एक बड़े संघर्ष को जन्म दे देता है। हमारा मौन रहना अनजाने में उस व्यक्ति का समर्थन बन जाता है और वह अपने आपको और अधिक शक्तिशाली अनुभव करने लगता है। यहीं से हमारा दमन प्रारंभ हो जाता है। एक के बाद एक, हम अन्याय में अनचाहे रूप से सम्मिलित होते चले जाते हैं जो आगे चलकर बड़े टकराव का कारण बनता है।

 

 

 

 

तो फिर इसका तोड़ क्या है? यह समझने के लिए यह जानना आवश्यक है कि ऐसी कौन सी बात है जो विरोध करने से रोकती है। यह सामने वाले की शक्ति तो नहीं हो सकती। यह तो हमारा खुद का डर होता है जो हमें मौन रहने को विवश करता है। क्या हम मन से डर को निकाल कर अन्याय का विरोध नहीं कर सकते? आखिर वह हमारा क्या और कितना बिगाड़ सकता है? सोचिए, ऐसा करने से हमारा मन कितना मुक्त, कितना हल्का अनुभव करेगा। देवेंद्रसागरसूरिजी ने आगे कहा की अन्याय सहना अन्याय करने से ज्यादा बड़ा पाप है।

आज समाज में यही तो हो रहा है, जहां विरोध करना चाहिए वहां कोई बोलता नहीं। कोई बलशाली व्यक्ति कुछ भी गलत बोल दे तो उसके सामने विरोध करने की किसी की हिम्म्मत नहीं होती। उसके समक्ष हम कमजोर पड़ जाते हैं। दूसरी ओर हम बोले चले जा रहे हैं, जहां बोलने की कोई आवश्यकता ही नहीं। और अन्याय होता देख चुप रहकर बच निकलते हैं। क्या हम निरंतर अपराध के भागीदार नहीं बन रहे विचार करके देखिए?

 

मुनि महापद्मसागरजी ने अपने प्रवचन में कहा कि

इतिहास साक्षी है कि पापियों की उद्दंडता ने संसार को उतनी हानि नहीं पहुंचाई जितनी कि सज्जनों के मौन ने पहुंचाई। यदि कोई मूर्ख बोल रहा है तो मौन रहना उचित है, परंतु यदि कहीं छल हो रहा है, अपराध हो रहा है तो उठिए और विरोध कीजिए, क्योंकि आपके लिए न सही आने वाली पीढ़ी के लिए यह मौन घातक सिद्ध हो सकता है।