जंगल वाले बाबा के नाम से प्रख्यात दिगंबर जैन संत मुनि श्री चिन्मय सागर जी महाराज ने यम सल्लेखना ली।
 

इंदौर:- जुगुल ग्राम जिला बेलगांव कर्नाटक में विराजमान आचार्य विद्यासागर महाराज के शिष्य मुनि श्री चिन्मय सागर महाराज, जिन्हें जंगल वाले बाबा के नाम से भी जाना जाता हैं, ने आज 12 अक्टूबर, शनिवार को यम सल्लेखना धारण कर ली है।

 

मुनि श्री का स्वास्थ्य पिछले कई महीनों से ठीक नहीं था और वह कई दिनों से आहार के नाम पर जल ही ग्रहण कर रहे थे।

समाज के संजीव जैन संजीवनी ने बताया कि आज सुबह मुनि श्री ने समाज को संबोधित किया और बताया कि मुझे तन और मन की चिंता नही है, चिंता है तो बस अपनी चेतन आत्मा और अपने परिणामों को संभालने की।

मुनि श्री ने जीवन पर्यंत के लिए चारों प्रकार के आहार का त्याग कर सल्लेखना धारण की है एवं जगत के सभी जीवो से क्षमा याचना करते हुए सभी को क्षमा भाव प्रेषित किए हैं।

संजीव जैन संजीवनी

 


 

 


सल्लेखना क्या है?

सल्लेखना (समाधि या सथारां) मृत्यु को निकट जानकर अपनाये जाने वाली एक जैन प्रथा है। इसमें जब एक श्रावक या मुनि को लगता है कि वह मौत के करीब है अथवा उसका शरीर साथ नही दे रहा है तो वह खुद धीरे धीरे शरीर से अपना मोह कम करने लगता है।

मौत तो निश्चित है व्यक्ति भले ही कितना प्रयास कर ले यह शरीर तो निश्चित रूप से खत्म ही होना है। जब शरीर धर्म साधना करने में असमर्थता दिखाने लगता है तो श्रावक अपनी आत्मा में, स्वयं में लीन होने का प्रयास करने लगता है।

इसी को दिगम्बर जैन शास्त्र अनुसार समाधि या सल्लेखना कहा जाता है, इसे ही श्वेतांबर साधना पध्दती में संथारा कहा जाता है। 

सल्लेखना दो शब्दों से मिलकर बना है सत्+लेखना। इस का अर्थ है - सम्यक् प्रकार से काया और कषायों को कमज़ोर करना। यह श्रावक और मुनि दोनो के लिए बतायी गयी है।

 इसे जीवन की अंतिम साधना भी माना जाता है, जिसके आधार पर व्यक्ति मृत्यु को पास देखकर सबकुछ त्याग देता है। जैन ग्रंथ, तत्त्वार्थ सूत्र के सातवें अध्याय के २२वें श्लोक में लिखा है: "व्रतधारी श्रावक मरण के समय होने वाली सल्लेखना को प्रतिपूर्वक सेवन करे"।

 

 

 

 

 

क्या है यम सल्लेखना?

 

सल्लेखना दो प्रकार की होती है नियम और यम। जब बचने की उम्मीद रहती है तब मुनिराज नियम सल्लेखना धारण करते हैं यानी उपसर्ग दुर्भिक्ष आदि दूर होंगे तो आहार ग्रहण करेंगे लेकिन जहां बचने की कोई उम्मीद नहीं दिखती वहां वे यम सल्लेखना अर्थात जीवन पर्यंत आहार का त्याग कर संलेखना धारण करते हैं।

आचार्य श्री ने यम सल्लेखना धारण की हुई है।

संजीव जैन संजीवनी